सांडर्स हत्या (1928): भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी प्रतिशोध का प्रतीक
सांडर्स हत्या (1928):
सांडर्स हत्या, जिसे लाहौर षड्यंत्र केस के रूप में भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। 17 दिसंबर 1928 को भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव जैसे युवा क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की। यह हत्या लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए की गई थी, जो साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के दौरान पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज में घायल हो गए थे। इस घटना ने भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन को एक नया मोड़ दिया और भगत सिंह को एक प्रमुख क्रांतिकारी नेता के रूप में स्थापित किया।
पृष्ठभूमि: साइमन कमीशन का विरोध और लाला लाजपत राय की मृत्यु
1920 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम दो धाराओं में बंटा हुआ था – एक तरफ गांधीजी के नेतृत्व में अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन था, और दूसरी तरफ युवा क्रांतिकारी नेताओं का सशस्त्र संघर्ष। 1928 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय राजनीतिक सुधारों का अध्ययन करने के लिए साइमन कमीशन को भारत भेजा। इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था, जिससे पूरे देश में इसका विरोध शुरू हो गया।
30 अक्टूबर 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध करते हुए एक बड़ी रैली निकाली गई, जिसका नेतृत्व लाला लाजपत राय ने किया। ब्रिटिश पुलिस ने इस रैली पर लाठीचार्ज किया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए। 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और भारतीय युवाओं में आक्रोश की लहर दौड़ गई। भगत सिंह और उनके साथियों ने इसे ब्रिटिश सरकार का अत्याचार माना और लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की ठानी।
सांडर्स की हत्या की योजना
लाला लाजपत राय की मौत के बाद, भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, और चंद्रशेखर आजाद ने ब्रिटिश अधिकारी स्कॉट को मारने की योजना बनाई, जो लाठीचार्ज का मुख्य जिम्मेदार था। लेकिन 17 दिसंबर 1928 को एक गलती से उन्होंने स्कॉट की जगह पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी। सॉन्डर्स उस समय पुलिस मुख्यालय से बाहर आ रहा था, जब राजगुरु ने उस पर पहली गोली चलाई। भगत सिंह ने भी उस पर गोलियां चलाईं, जिससे सॉन्डर्स की मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद भगत सिंह और राजगुरु वहां से भाग निकले।
भगत सिंह की पहचान छिपाने की रणनीति
हत्या के बाद, भगत सिंह और उनके साथियों को गिरफ्तारी से बचने के लिए लाहौर छोड़ना पड़ा। भगत सिंह ने अपने बाल कटवा लिए और अंग्रेजी स्टाइल में कपड़े पहनकर वे ब्रिटिश पुलिस की नजरों से बच निकले। बाद में उन्होंने दिल्ली में कुछ समय बिताया और फिर क्रांतिकारी गतिविधियों में जुट गए।
क्रांतिकारी संदेश और सांडर्स हत्या का प्रभाव
सांडर्स की हत्या केवल एक प्रतिशोध नहीं थी, बल्कि यह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय युवाओं के विद्रोह का प्रतीक बन गई। इस हत्या ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी पक्ष को एक नया आयाम दिया। भगत सिंह और उनके साथियों का मानना था कि केवल हिंसात्मक तरीकों से ब्रिटिश शासन को समाप्त किया जा सकता है, क्योंकि अहिंसात्मक आंदोलन से कोई ठोस परिणाम नहीं निकल रहा था।
भगत सिंह के इस साहसिक कदम ने उन्हें पूरे भारत में युवाओं के बीच एक नायक बना दिया। उनकी इस क्रांति ने युवाओं को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा का संचार किया।
लाहौर षड्यंत्र केस और भगत सिंह की गिरफ्तारी
सांडर्स की हत्या के बाद, भगत सिंह और उनके साथियों की तलाश तेज हो गई। हालांकि भगत सिंह उस समय बच निकले थे, लेकिन बाद में 8 अप्रैल 1929 को उन्होंने दिल्ली में केंद्रीय असेंबली में बम फेंककर गिरफ्तारी दी। उनका इरादा किसी को नुकसान पहुंचाने का नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करना था।
भगत सिंह, राजगुरु, और सुखदेव को लाहौर षड्यंत्र केस के तहत गिरफ्तार किया गया और उन पर सांडर्स की हत्या का मुकदमा चलाया गया। 23 मार्च 1931 को इन तीनों क्रांतिकारियों को फांसी दी गई। भगत सिंह की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ दिया और उन्हें देश के युवाओं का प्रेरणास्रोत बना दिया।
निष्कर्ष
सांडर्स हत्या भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष को एक नई दिशा दी। यह घटना केवल लाला लाजपत राय की मृत्यु का प्रतिशोध नहीं थी, बल्कि यह भारतीय युवाओं के उस जज्बे का प्रतीक थी, जो किसी भी कीमत पर देश को आजाद देखना चाहते थे। भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु की शहादत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अमर प्रेरणा बनी रही, जिसने आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
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