भारतीय स्वतंत्रता संग्राम

 क्रांतिकारी आंदोलन और हिंसात्मक प्रयास

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था क्रांतिकारी आंदोलन, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह और हिंसात्मक कार्यवाहियों को अपनाया। इन आंदोलनों का उद्देश्य ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकना और भारत को स्वतंत्रता दिलाना था। 1857 की क्रांति के बाद जब अहिंसात्मक आंदोलनों और संवैधानिक उपायों से अपेक्षित परिणाम नहीं मिले, तब कुछ युवा राष्ट्रवादियों ने हिंसात्मक प्रयासों को अपनाकर स्वराज प्राप्त करने का निश्चय किया।

क्रांतिकारी आंदोलनों की पृष्ठभूमि

19वीं शताब्दी के अंत तक, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक नई दिशा की ओर बढ़ने लगा। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य संवैधानिक और अहिंसात्मक तरीकों से भारतीयों के लिए स्वायत्तता प्राप्त करना था। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, कुछ भारतीयों को यह महसूस हुआ कि कांग्रेस की नीतियां पर्याप्त रूप से प्रभावी नहीं हैं। 1905 के बंगाल विभाजन और स्वदेशी आंदोलन के बाद, भारतीय समाज में राष्ट्रवाद का उभार तेज़ी से बढ़ा, और एक वर्ग यह मानने लगा कि ब्रिटिश शासन को सशस्त्र संघर्ष के बिना नहीं हराया जा सकता।

प्रमुख क्रांतिकारी संगठन

भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन ने देश के विभिन्न हिस्सों में अपना आधार बनाया। विभिन्न क्रांतिकारी संगठनों ने स्वतंत्रता के लिए हिंसात्मक प्रयासों की शुरुआत की। इन संगठनों का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश अधिकारियों की हत्या, बम विस्फोट, और हथियारों का संग्रह करना था ताकि ब्रिटिश शासन को डराया जा सके और जनता में क्रांति की भावना को भड़काया जा सके।

अनुशीलन समिति

1902 में स्थापित अनुशीलन समिति बंगाल का एक प्रमुख क्रांतिकारी संगठन था। इसका नेतृत्व प्रमथनाथ मित्र और अरविंद घोष जैसे नेताओं ने किया। इस संगठन का उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह करना था। अनुशीलन समिति ने बम बनाने और ब्रिटिश अधिकारियों पर हमले करने जैसे कार्य किए। 1908 में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी द्वारा किंग्सफोर्ड पर किए गए बम हमले ने इस संगठन की ओर ध्यान आकर्षित किया।

गदर पार्टी

गदर पार्टी की स्थापना 1913 में अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीयों ने की थी। लाला हरदयाल, बाबा गंगा सिंह, और करतार सिंह सराभा जैसे क्रांतिकारी इसके प्रमुख नेता थे। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य भारत में सशस्त्र विद्रोह के माध्यम से ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गदर पार्टी ने ब्रिटिश भारतीय सेना में विद्रोह की योजना बनाई, हालांकि इसे सफल नहीं हो सकी।

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA)

1924 में कानपुर में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, और चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों द्वारा हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) की स्थापना की गई। इस संगठन का उद्देश्य ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकना और भारत को एक गणराज्य के रूप में स्थापित करना था। HRA ने 1925 में काकोरी कांड को अंजाम दिया, जिसमें क्रांतिकारियों ने एक ट्रेन से ब्रिटिश सरकार का खजाना लूट लिया।

हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)

1928 में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु, और बटुकेश्वर दत्त जैसे क्रांतिकारियों ने HRA का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) कर दिया। इसका उद्देश्य न केवल ब्रिटिश शासन को समाप्त करना था, बल्कि भारत में समाजवादी व्यवस्था की स्थापना भी करना था। HSRA का सबसे प्रसिद्ध कार्य 1928 में सांडर्स की हत्या और 1929 में केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट था।

प्रमुख क्रांतिकारी गतिविधियाँ

अलिपुर बम कांड (1908)

अनुशीलन समिति के सदस्य प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस ने 30 अप्रैल 1908 को मुजफ्फरपुर में एक ब्रिटिश मजिस्ट्रेट किंग्सफोर्ड की हत्या करने का प्रयास किया। हालांकि बम से गलत गाड़ी को निशाना बनाया गया, जिसमें दो अंग्रेज महिलाएं मारी गईं। इस घटना के बाद खुदीराम बोस गिरफ्तार किए गए और उन्हें फांसी दी गई।

काकोरी कांड (1925)

HRA के सदस्यों ने 9 अगस्त 1925 को लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर एक ट्रेन से सरकारी खजाने को लूट लिया। इस घटना में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां, चंद्रशेखर आजाद, और कई अन्य क्रांतिकारी शामिल थे। ब्रिटिश सरकार ने इस कांड के बाद कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया और रामप्रसाद बिस्मिल और अशफाक उल्ला खां सहित चार क्रांतिकारियों को फांसी दी गई।

सांडर्स हत्या (1928)

लाला लाजपत राय की पुलिस लाठीचार्ज में मृत्यु के बदले में, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सांडर्स की हत्या कर दी। यह घटना भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन का एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, जिसने भगत सिंह और उनके साथियों को देशभर में लोकप्रिय बना दिया।

असेंबली बम कांड (1929)

भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका। हालांकि इस विस्फोट से कोई हताहत नहीं हुआ, लेकिन इसका उद्देश्य ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध करना था। बम फेंकने के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने खुद को गिरफ्तार कर लिया और न्यायालय में अपने विचारों का प्रचार किया। भगत सिंह और उनके साथियों को फांसी की सजा सुनाई गई, जिससे वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीद बन गए।

क्रांतिकारी आंदोलन के परिणाम

क्रांतिकारी आंदोलनों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई ऊर्जा और साहस भर दिया। हालांकि, इन आंदोलनों को ब्रिटिश सरकार ने कड़े दमन के साथ दबा दिया और कई क्रांतिकारी शहीद हो गए। फिर भी, इन क्रांतिकारी आंदोलनों ने भारतीय जनता को प्रेरित किया और उनके बलिदान ने राष्ट्रीय आंदोलन में अहिंसात्मक संघर्ष के साथ-साथ क्रांतिकारी विचारधारा को भी जीवित रखा।

क्रांतिकारी आंदोलन की सीमाएँ

क्रांतिकारी आंदोलन के पास संगठित नेतृत्व और व्यापक जनसमर्थन की कमी थी। हिंसात्मक प्रयासों के कारण आंदोलन का दमन करना ब्रिटिश सरकार के लिए अपेक्षाकृत आसान हो गया। इसके अलावा, आंदोलन के कई नेता विदेशी हथियारों पर निर्भर थे, जो समय पर उपलब्ध नहीं हो सके। इसके बावजूद, क्रांतिकारी आंदोलन ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और भारतीय युवाओं में देशभक्ति की भावना को जागृत किया।

निष्कर्ष

क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा। इन आंदोलनों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष का मार्ग अपनाया और भारतीय युवाओं में देशभक्ति और साहस का संचार किया। हालाँकि, इन आंदोलनों को ब्रिटिश दमन के कारण सफलताएं नहीं मिलीं, लेकिन इनके प्रभाव ने भारतीय समाज को गहरे रूप से प्रभावित किया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, और रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान ने स्वतंत्रता संग्राम में नई ऊर्जा भरी और उनके बलिदान ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया।

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