भगत सिंह: आज़ादी के लिए जीवन समर्पित करने वाला महान क्रांतिकारी (1907–1931)
परिचय
भगत सिंह, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे साहसी और प्रेरणादायक क्रांतिकारियों में से एक, का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले (वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित) के एक सिख परिवार में हुआ था। बचपन से ही देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत भगत सिंह ने अपना पूरा जीवन भारत की आज़ादी के लिए समर्पित कर दिया। उनके अदम्य साहस, निडरता, और स्वतंत्रता के प्रति उनकी अडिग प्रतिबद्धता ने उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमर नायक बना दिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
भगत सिंह का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ था जो पहले से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय था। उनके पिता, किशन सिंह, और चाचा, अजीत सिंह, दोनों स्वतंत्रता सेनानी थे, जिनका अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का लंबा इतिहास था। इस तरह के क्रांतिकारी माहौल में पलने-बढ़ने वाले भगत सिंह के मन में बचपन से ही अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना उत्पन्न हो गई।
भगत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल में हुई, लेकिन जल्द ही उनके परिवार ने उन्हें लाहौर के डीएवी हाई स्कूल भेज दिया। यहाँ, उन्होंने भारतीय इतिहास, और स्वतंत्रता आंदोलन के बारे में गहन अध्ययन किया और इसके साथ ही वे उन क्रांतिकारी विचारधाराओं से प्रभावित हुए, जो देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए संघर्ष कर रहे थे।
क्रांतिकारी गतिविधियों की शुरुआत
जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) ने भगत सिंह के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। इस घटना ने उनके मन में अंग्रेजों के प्रति गहरी नफरत पैदा कर दी और उन्होंने देश को अंग्रेजों के चंगुल से आज़ाद कराने की ठान ली। वे महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से प्रभावित हुए और इसके समर्थन में अपने स्कूल की किताबें और ब्रिटिश अवार्ड्स जला दिए।
हालांकि, जब गांधीजी ने चौरी चौरा कांड (1922) के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया, तो भगत सिंह ने हिंसक क्रांति के मार्ग को अपनाने का फैसला किया। वे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA) में शामिल हो गए, जो बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के रूप में जानी जाने लगी। इस संगठन का उद्देश्य हिंसक क्रांति के माध्यम से अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालना था।
काकोरी कांड और संगठनात्मक गतिविधियाँ
1925 में काकोरी कांड के बाद, जब कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया, तो भगत सिंह ने संगठन को पुनर्जीवित करने का काम किया। उन्होंने "कीर्ति किसान पार्टी" के मुखपत्र 'कीर्ति' के लिए लेख लिखे और किसानों-मजदूरों को संगठित करने का प्रयास किया। भगत सिंह ने लाहौर में "नौजवान भारत सभा" की स्थापना भी की, जिसका उद्देश्य युवाओं में क्रांतिकारी विचारधारा को फैलाना था।
साइमन कमीशन का विरोध और लाला लाजपत राय की मौत
1928 में जब साइमन कमीशन भारत आया, तो पूरे देश में इसका विरोध किया गया, क्योंकि इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। लाला लाजपत राय ने लाहौर में साइमन कमीशन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया। इस विरोध के दौरान पुलिस अधीक्षक जेम्स ए स्कॉट ने लाठीचार्ज का आदेश दिया, जिसमें लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई। लाला जी की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके साथियों ने स्कॉट को मारने की योजना बनाई, लेकिन गलती से जेपी सॉन्डर्स को गोली मार दी गई।
असेंबली बम कांड और गिरफ्तारी
भगत सिंह का सबसे प्रसिद्ध और साहसी कदम था 8 अप्रैल 1929 को दिल्ली की केंद्रीय असेंबली में बम फेंकना। उनका उद्देश्य किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं था, बल्कि ब्रिटिश सरकार को जगाना और भारतीय जनता की आवाज को बुलंद करना था। बम फेंकने के बाद भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने नारे लगाए, "इंकलाब जिंदाबाद" और "साम्राज्यवाद मुर्दाबाद।" उन्होंने गिरफ्तारी दी और अपने कार्य के औचित्य के बारे में अदालत में जोशपूर्ण भाषण दिए।
अधिक जानकारी के लिए यहां क्लिक करें :
लाहौर षड्यंत्र केस और फांसी
भगत सिंह और उनके साथियों को लाहौर षड्यंत्र केस में दोषी ठहराया गया और 23 मार्च 1931 को उन्हें सुखदेव और राजगुरु के साथ फांसी दे दी गई। उनकी फांसी ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया और वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीद बन गए।
विरासत और प्रभाव
भगत सिंह की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया मोड़ दिया। उन्होंने जो साहस और बलिदान दिखाया, उसने देश के युवाओं को प्रेरित किया और उन्हें स्वतंत्रता की लड़ाई में कूदने के लिए प्रोत्साहित किया। भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार और उनके द्वारा दिए गए नारे "इंकलाब जिंदाबाद" आज भी भारतीय युवाओं को प्रेरित करते हैं।
भगत सिंह न केवल एक महान क्रांतिकारी थे, बल्कि एक गहन विचारक और लेखक भी थे। उन्होंने अपने लेखों और पत्रों के माध्यम से समाजवाद, साम्राज्यवाद, और भारतीय स्वतंत्रता के विचारों को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया। उनका जीवन और संघर्ष हमें यह सिखाता है कि सच्ची स्वतंत्रता के लिए बलिदान और समर्पण की आवश्यकता होती है।
निष्कर्ष
भगत सिंह का जीवन हमें न केवल उनके साहस और बलिदान की याद दिलाता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि देश के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और समर्पण ही सबसे बड़ी सेवा है। उनकी शहादत ने उन्हें अमर कर दिया, और वे आज भी भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानियों में से एक के रूप में पूजे जाते हैं। भगत सिंह का नाम हमेशा उस स्वतंत्रता के लिए याद किया जाएगा, जो उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर हमें दिलाई।
कोई टिप्पणी नहीं