महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलनों की तिथि-वार यात्रा

  महात्मा गांधी के प्रमुख आंदोलनों की तिथि-वार सूची

महात्मा गांधी जिन्हें "राष्ट्रपिता" के रूप में जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली नेता थे। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों पर आधारित कई आंदोलनों का नेतृत्व किया, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारत की आजादी की लड़ाई को गति दी। यहाँ उनके प्रमुख आंदोलनों की तिथि-वार सूची प्रस्तुत की जा रही है:


1. चंपारण सत्याग्रह (1917)

तिथि: अप्रैल 1917

स्थान: चंपारण, बिहार

कारण: नील की खेती करने वाले किसानों का शोषण और उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ।

विवरण: महात्मा गांधी ने चंपारण में नील की खेती कर रहे किसानों की मदद के लिए सत्याग्रह किया। यह उनका भारत में पहला सत्याग्रह था, जिससे किसानों को राहत मिली और अंग्रेजों को उनके खिलाफ नीतियां बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा।


 2. अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918)

तिथि: मार्च 1918

स्थान: अहमदाबाद, गुजरात

कारण: कपड़ा मिलों में काम करने वाले मजदूरों के वेतन और काम की परिस्थितियों में सुधार की मांग।

 विवरण: गांधीजी ने कपड़ा मिल मजदूरों का नेतृत्व करते हुए उनके लिए बेहतर वेतन और काम की परिस्थितियों की मांग की। यह आंदोलन भी अहिंसा और सत्याग्रह पर आधारित था, जो अंततः मजदूरों की जीत में समाप्त हुआ।


3. खेड़ा सत्याग्रह (1918)

तिथि: 22 मार्च 1918

स्थान: खेड़ा, गुजरात

कारण: खराब मौसम और फसल नष्ट होने के बावजूद किसानों पर लगान का दबाव।

विवरण: खेड़ा सत्याग्रह में गांधीजी ने किसानों की मदद की, जो खराब फसल के बावजूद कर (लगान) चुकाने के लिए मजबूर किए जा रहे थे। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप किसानों को कर में राहत मिली।


 4. असहयोग आंदोलन (1920–1922)

तिथि: 1 अगस्त 1920 से 4 फरवरी 1922

स्थान: पूरे भारत में

कारण: जलियांवाला बाग हत्याकांड और खिलाफत आंदोलन के समर्थन में।

विवरण: गांधीजी ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया, जिसमें भारतीयों से ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार करने, सरकारी नौकरियों से इस्तीफा देने और ब्रिटिश शैक्षणिक संस्थानों का बहिष्कार करने की अपील की गई। इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासन की नींव हिला दी।


 5. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930–1934)

तिथि: 12 मार्च 1930 से 6 अप्रैल 1930 तक (दांडी मार्च)

स्थान: पूरे भारत में, प्रमुख रूप से गुजरात

कारण: नमक पर अंग्रेजों के अत्यधिक कर के विरोध में।

विवरण: गांधीजी ने नमक कर के खिलाफ दांडी मार्च का नेतृत्व किया, जिसमें उन्होंने 24 दिनों में 390 किलोमीटर की यात्रा करके समुद्र तट पर नमक बनाया। यह आंदोलन ब्रिटिश कानूनों के खिलाफ सविनय अवज्ञा का प्रतीक बना और पूरे देश में फैल गया।


 6. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

तिथि: 8 अगस्त 1942

स्थान: मुंबई (तब बंबई)

कारण: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश शासन से भारत को तुरंत आज़ादी दिलाने की मांग।

विवरण: गांधीजी ने "अंग्रेजों, भारत छोड़ो" का नारा देते हुए इस आंदोलन का नेतृत्व किया। यह आंदोलन भारत की आजादी के लिए अंतिम संघर्ष के रूप में देखा गया। आंदोलन के दौरान गांधीजी और कांग्रेस के कई प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन यह आंदोलन पूरे देश में फैल गया और ब्रिटिश शासन को संकट में डाल दिया।


7. हरिजन आंदोलन (1932-1934)

तिथि: 1932 से 1934

स्थान: पूरे भारत में

कारण: दलितों (अछूतों) के साथ हो रहे सामाजिक भेदभाव को समाप्त करना।

विवरण: गांधीजी ने हरिजन आंदोलन की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य दलितों को सामाजिक और राजनीतिक अधिकार दिलाना था। उन्होंने दलितों को "हरिजन" नाम दिया, जिसका अर्थ है "भगवान के लोग"। इस आंदोलन के दौरान उन्होंने दलितों के लिए मंदिर प्रवेश, शिक्षा और पानी के सार्वजनिक स्रोतों के उपयोग की मांग की।


 8. रौलेट एक्ट विरोध (1919)

तिथि: 6 अप्रैल 1919

स्थान: पूरे भारत में

कारण: रौलेट एक्ट, जिसमें बिना मुकदमा चलाए लोगों को गिरफ्तार किया जा सकता था।

विवरण: गांधीजी ने रौलेट एक्ट का कड़ा विरोध किया, जो नागरिक स्वतंत्रता का उल्लंघन था। इसके विरोध में उन्होंने 6 अप्रैल 1919 को एक राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया, जिसने ब्रिटिश सरकार को इस अधिनियम को निरस्त करने के लिए मजबूर किया।


निष्कर्ष

महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान किए गए ये सभी आंदोलन उनके दृढ़ संकल्प, अहिंसा, और सत्याग्रह के सिद्धांतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन आंदोलनों ने न केवल ब्रिटिश शासन की जड़ें हिला दीं, बल्कि भारतीय जनता को भी एकजुट किया और उन्हें स्वतंत्रता की दिशा में प्रेरित किया। गांधीजी का जीवन और उनका संघर्ष हमें यह सिखाता है कि सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलकर भी बड़े से बड़े परिवर्तन लाए जा सकते हैं। उनका योगदान भारतीय इतिहास में अमर रहेगा, और वे हमेशा "राष्ट्रपिता" के रूप में याद किए जाएंगे।

             

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