असहयोग आंदोलन (1920–1922): एक राष्ट्रीय जागरण


असहयोग आंदोलन भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसे महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1920 से 1922 तक चलाया गया। यह आंदोलन ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनमानस में जागरूकता और संघर्ष की भावना को उत्पन्न करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।

आंदोलन की पृष्ठभूमि

प्रथम विश्व युद्ध के बाद, ब्रिटिश सरकार ने भारत में रौलेट एक्ट जैसे दमनकारी कानून लागू किए, जिससे भारतीयों में असंतोष बढ़ने लगा। जलियांवाला बाग हत्याकांड ने इस असंतोष को और गहरा कर दिया। महात्मा गांधी, जो अहिंसा और सत्याग्रह के समर्थक थे, ने महसूस किया कि अब समय आ गया है जब भारतीय जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ संगठित किया जाए। इसी भावना के तहत 1920 में असहयोग आंदोलन का आह्वान किया गया।

असहयोग आंदोलन की रणनीति

असहयोग आंदोलन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश शासन को कमजोर करना था। इसके लिए गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के साथ असहयोग करने की नीति अपनाई। इस आंदोलन में भारतीयों से अपील की गई कि वे सरकारी नौकरियों, सरकारी शिक्षा संस्थानों, कानून अदालतों और ब्रिटिश वस्त्रों का बहिष्कार करें। इसके साथ ही, विदेशी वस्त्रों की होली जलाने और स्वदेशी वस्त्रों को अपनाने की भी सलाह दी गई।

आंदोलन का प्रभाव

असहयोग आंदोलन ने भारतीय समाज में एक नई ऊर्जा का संचार किया। लाखों भारतीयों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने असंतोष को प्रकट किया। वकीलों ने अपनी प्रैक्टिस छोड़ी, छात्रों ने स्कूल-कॉलेज का बहिष्कार किया, और व्यापारियों ने विदेशी वस्त्रों का त्याग किया। ग्रामीण इलाकों में भी इस आंदोलन का व्यापक प्रभाव देखने को मिला, जहां किसानों और मजदूरों ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई।

गांधीजी की भूमिका

महात्मा गांधी असहयोग आंदोलन के केंद्र बिंदु थे। उनका मानना था कि यदि भारतीय जनता ब्रिटिश शासन के साथ असहयोग करे, तो ब्रिटिश हुकूमत स्वतः कमजोर हो जाएगी। गांधीजी के नेतृत्व में इस आंदोलन ने पूरे भारत में एक राष्ट्रीय जागरण की लहर पैदा की। उन्होंने सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों पर आधारित इस आंदोलन को एक नैतिक संघर्ष के रूप में प्रस्तुत किया, जिससे यह आंदोलन और भी प्रभावी बन गया।

आंदोलन का अंत और परिणाम

हालांकि असहयोग आंदोलन ने भारतीय जनमानस को ब्रिटिश शासन के खिलाफ एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद गांधीजी ने इसे वापस लेने का निर्णय लिया। इस कांड में हिंसा होने के कारण गांधीजी ने अहिंसा के सिद्धांत को बनाए रखने के लिए आंदोलन को समाप्त कर दिया।

हालांकि, असहयोग आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। इस आंदोलन ने भारतीय जनता को यह महसूस कराया कि ब्रिटिश शासन का मुकाबला केवल हथियारों से नहीं, बल्कि नैतिक और अहिंसात्मक तरीकों से भी किया जा सकता है। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ और इसके परिणामस्वरूप भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन को एक नई दिशा और दृष्टि मिली।

        

कोई टिप्पणी नहीं