असेंबली बम कांड (1929): असेंबली बम कांड का परिणाम और असेंबली बम कांड के प्रभाव
असेंबली बम कांड (1929):
असेंबली बम कांड, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। इस घटना ने देश भर के लोगों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूक किया और क्रांतिकारी गतिविधियों को नए सिरे से बल दिया। 8 अप्रैल 1929 को, दिल्ली की केंद्रीय विधान सभा में बम विस्फोट कर भारतीय क्रांतिकारी भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार को एक कड़ा संदेश दिया। यह कांड किसी व्यक्ति की हत्या के उद्देश्य से नहीं किया गया था, बल्कि इसका उद्देश्य ब्रिटिश हुकूमत के कानूनी ढांचे को चुनौती देना और भारतीयों की आवाज़ को विश्व मंच पर पहुंचाना था।
असेंबली बम कांड की पृष्ठभूमि
1920 के दशक में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम दो अलग-अलग ध्रुवों में बंटा हुआ था। एक तरफ महात्मा गांधी और कांग्रेस के नेतृत्व में अहिंसात्मक असहयोग आंदोलन चल रहा था, जबकि दूसरी तरफ भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, और उनके जैसे क्रांतिकारी हिंसात्मक क्रांति के रास्ते पर चलने का विचार कर रहे थे। उनके विचार में ब्रिटिश शासन को केवल सशस्त्र क्रांति से ही खत्म किया जा सकता था, क्योंकि अहिंसात्मक आंदोलन से कोई ठोस परिणाम नहीं आ रहे थे।
1928 में लाला लाजपत राय की मृत्यु के बाद से ही भगत सिंह और उनके साथियों का रोष और अधिक बढ़ गया था। ब्रिटिश सरकार की नीतियों से निराश होकर उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने के लिए एक बड़ा कदम उठाने का फैसला किया।
असेंबली बम कांड की योजना
1929 में ब्रिटिश सरकार ने सार्वजनिक सुरक्षा विधेयक और औद्योगिक विवाद विधेयक को पास करने का प्रस्ताव रखा। इन विधेयकों के माध्यम से ब्रिटिश सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों की गतिविधियों को नियंत्रित करना चाहती थी और मजदूर वर्ग पर और अधिक नियंत्रण स्थापित करना चाहती थी। इस विधेयक के विरोध में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के क्रांतिकारियों ने असेंबली में बम विस्फोट करने की योजना बनाई।
इस योजना का उद्देश्य किसी की हत्या करना नहीं था, बल्कि यह एक प्रतीकात्मक विरोध था। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंकने का फैसला किया ताकि ब्रिटिश हुकूमत को यह संदेश मिले कि भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन अब चुप नहीं बैठने वाला है। उनका उद्देश्य था कि ब्रिटिश सरकार भारतीय जनता की आवाज़ को गंभीरता से ले और स्वतंत्रता की मांग को माने।
असेंबली में बम विस्फोट
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली की केंद्रीय विधान सभा में बम फेंका। बम असेंबली के खाली स्थान पर फेंका गया ताकि किसी की जान न जाए। बम फेंकने के बाद दोनों क्रांतिकारियों ने नारा लगाया, "इंकलाब जिंदाबाद!" (क्रांति अमर रहे!) और साथ ही पर्चे भी फेंके जिनमें ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों और स्वतंत्रता की मांग का विवरण था।
बम विस्फोट से किसी की मृत्यु नहीं हुई, क्योंकि इसका उद्देश्य केवल ब्रिटिश सरकार को चेतावनी देना था। बम विस्फोट के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने भागने की कोशिश नहीं की। उन्होंने स्वेच्छा से अपनी गिरफ्तारी दी ताकि वे अपने विचारों को जनता तक पहुंचा सकें और ब्रिटिश अदालत के सामने अपना पक्ष रख सकें।
अदालत में भगत सिंह का बयान
असेंबली बम कांड के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया और उन्होंने अपने कार्यों का स्पष्ट रूप से समर्थन किया। भगत सिंह ने अदालत में अपने विचारों को बेबाकी से प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि यह बम फेंकने का उद्देश्य हिंसा नहीं था, बल्कि यह ब्रिटिश सरकार के कानों तक भारतीय जनता की आवाज़ पहुंचाने का एक तरीका था। उनका यह भी कहना था कि ब्रिटिश सरकार भारतीयों की स्वतंत्रता के संघर्ष को नजरअंदाज कर रही है, और ऐसे में सशस्त्र क्रांति ही एकमात्र विकल्प रह गया था।
भगत सिंह ने कहा, "बहरों को सुनाने के लिए विस्फोट की आवाज़ जरूरी होती है।" उनका यह बयान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक महत्वपूर्ण उद्धरण के रूप में दर्ज हो गया। यह बयान ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीयों के आक्रोश और स्वतंत्रता की तीव्र इच्छा को दर्शाता है।
असेंबली बम कांड का परिणाम
असेंबली बम कांड ने ब्रिटिश सरकार को हिला कर रख दिया। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को इस कांड के लिए दोषी ठहराया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। हालांकि, इस घटना के बाद भगत सिंह की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और वे भारतीय युवाओं के बीच एक नायक बन गए।
बम कांड के बाद भगत सिंह पर लाहौर षड्यंत्र केस भी चलाया गया, जिसमें उन्हें और उनके साथी राजगुरु और सुखदेव को सांडर्स हत्या के मामले में दोषी ठहराया गया और 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई। इस फांसी ने भारतीय जनता के बीच गहरा आक्रोश उत्पन्न किया और भगत सिंह की शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम को और अधिक तीव्र कर दिया।
असेंबली बम कांड के प्रभाव
असेंबली बम कांड केवल एक क्रांतिकारी घटना नहीं थी, बल्कि यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नई दिशा की शुरुआत थी। इस घटना ने यह साबित कर दिया कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम केवल अहिंसात्मक आंदोलनों तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय युवा क्रांतिकारी किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार हैं।
भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की इस घटना ने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया और स्वतंत्रता के लिए लड़ाई को और अधिक मजबूत बना दिया। भगत सिंह की फांसी के बाद, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हिंसात्मक और अहिंसात्मक दोनों धाराओं का संगठित रूप से विरोध और समर्थन किया गया।
असेंबली बम कांड ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष को एक नया रूप दिया। भगत सिंह और उनके साथियों का संदेश स्पष्ट था – भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हर व्यक्ति का योगदान आवश्यक है और ब्रिटिश हुकूमत के अत्याचारों के खिलाफ हर संभव उपाय अपनाए जाने चाहिए।
निष्कर्ष
असेंबली बम कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को भारतीय क्रांतिकारियों की शक्ति का अहसास कराया और भारतीय जनता के बीच स्वतंत्रता के प्रति जागरूकता और अधिक बढ़ाई। भगत सिंह, बटुकेश्वर दत्त और उनके साथियों ने यह साबित कर दिया कि भारतीय युवा अपनी आजादी के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं।
इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले लोगों के दिलों में एक नई ऊर्जा भर दी। भगत सिंह और उनके साथियों की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक अमिट छाप छोड़ी और उन्हें हमेशा के लिए स्वतंत्रता संग्राम के महानायकों के रूप में याद किया जाएगा।
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