भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय: एक ऐतिहासिक दृष्टिकोण
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (Indian National Congress) की स्थापना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। 1885 में स्थापित यह संगठन स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष में एक प्रमुख शक्ति बन गया और भारत की आजादी के लिए किए गए आंदोलनों का नेतृत्व किया। लेकिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन कैसे हुआ? इस संगठन की स्थापना के पीछे कौन-कौन से कारण थे? इस ब्लॉग में, हम भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उदय और उसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य का विश्लेषण करेंगे।
1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का पृष्ठभूमि
19वीं सदी के अंत तक, ब्रिटिश शासन के तहत भारत में असंतोष और विरोध की भावना तेजी से बढ़ रही थी। इस समय तक, भारतीय जनता को यह एहसास हो गया था कि ब्रिटिश सरकार उनके हितों की उपेक्षा कर रही है और उनका शोषण कर रही है।
(i) अंग्रेजी शिक्षा और नई चेतना का उदय
ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार हुआ, जिससे भारतीय समाज में एक नई बौद्धिक और राजनीतिक चेतना का उदय हुआ। अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त भारतीयों ने पश्चिमी विचारों और लोकतांत्रिक मूल्यों से प्रेरणा ली और उन्होंने अंग्रेजों की नीतियों की आलोचना करना शुरू किया। इस नई शिक्षित वर्ग ने महसूस किया कि भारतीयों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए एक संगठित मंच की आवश्यकता है।
(ii) असंतोष और विरोध की भावना
19वीं सदी के अंत तक, भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष और विरोध की भावना प्रबल हो रही थी। अंग्रेजों की विभाजनकारी नीतियों, आर्थिक शोषण, और भारतीय समाज के साथ भेदभाव ने भारतीय जनता को अंग्रेजों के खिलाफ संगठित होने के लिए प्रेरित किया। भारतीयों को यह एहसास हो गया था कि उनके हितों की रक्षा केवल एक संगठित राजनीतिक संगठन के माध्यम से ही की जा सकती है।
2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुई थी। इस ऐतिहासिक बैठक का आयोजन एक सेवानिवृत्त ब्रिटिश अधिकारी, एलन ऑक्टेवियन ह्यूम (A.O. Hume) ने किया था। ह्यूम ने भारतीय नेताओं को एकजुट करने और उनके विचारों को व्यक्त करने के लिए एक मंच प्रदान करने का प्रस्ताव रखा।
(i) ए.ओ. ह्यूम की भूमिका
ए.ओ. ह्यूम एक ब्रिटिश सिविल सर्वेंट थे, जिन्होंने भारतीयों की दुर्दशा को समझा और उन्हें संगठित करने का विचार किया। ह्यूम का मानना था कि यदि भारतीयों के असंतोष को एक वैध और संगठित तरीके से व्यक्त नहीं किया गया, तो इससे ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक हिंसक आंदोलन हो सकता है। इसलिए, उन्होंने एक ऐसा मंच तैयार किया जहाँ भारतीय नेता अपने विचारों और मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से प्रस्तुत कर सकें। ह्यूम ने 1883 में भारतीय नेताओं को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उन्हें एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना का प्रस्ताव दिया। इस पत्र के परिणामस्वरूप, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई।
(ii) पहली बैठक और प्रारंभिक उद्देश्य
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली बैठक 28 से 31 दिसंबर 1885 के बीच बॉम्बे में हुई। इस बैठक में कुल 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया, जिनमें दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैयबजी, केशव चंद्र सेन, और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। इस बैठक में कांग्रेस के मुख्य उद्देश्यों को तय किया गया, जिसमें भारतीयों के लिए राजनीतिक और नागरिक अधिकारों की मांग, प्रशासन में सुधार की मांग, और भारतीयों के हितों की रक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाना शामिल था।
3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रारंभिक वर्ष
कांग्रेस के प्रारंभिक वर्षों में, संगठन ने मुख्य रूप से संवैधानिक और सुधारवादी नीतियों पर जोर दिया। कांग्रेस के नेता ब्रिटिश शासन के भीतर ही सुधारों की मांग कर रहे थे, और उनका मुख्य उद्देश्य भारतीयों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना था।
(i) संविधानिक सुधारों की मांग
कांग्रेस ने अपने प्रारंभिक वर्षों में ब्रिटिश सरकार से संवैधानिक सुधारों की मांग की। वे चाहते थे कि भारतीयों को प्रशासनिक सेवाओं में अधिक प्रतिनिधित्व मिले, उन्हें वायसराय की परिषद और विधान परिषदों में शामिल किया जाए, और भारतीयों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित किए जाएं। कांग्रेस ने नियमित रूप से ब्रिटिश सरकार को अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा और उनके खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध दर्ज किया।
(ii) अंग्रेजों के साथ सहयोग और संवाद
कांग्रेस के शुरुआती नेताओं का मानना था कि भारतीयों के अधिकारों की रक्षा और सुधारों को प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों के साथ संवाद और सहयोग आवश्यक है। वे ब्रिटिश सरकार के साथ शांतिपूर्ण वार्ता के माध्यम से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना चाहते थे। इस नीति के तहत, कांग्रेस ने ब्रिटिश सरकार के प्रति वफादारी दिखाई और यह विश्वास जताया कि उनकी मांगों को सुना जाएगा और उन पर कार्रवाई की जाएगी।
4. कांग्रेस की भूमिका और विस्तार
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने धीरे-धीरे पूरे देश में अपनी पकड़ मजबूत की। कांग्रेस के मंच ने भारतीयों को एकजुट होने और अपने अधिकारों के लिए संगठित तरीके से संघर्ष करने का अवसर प्रदान किया।
(i) राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता फैलाना
कांग्रेस के माध्यम से भारतीय जनता को उनके अधिकारों और ब्रिटिश सरकार की नीतियों के खिलाफ जागरूक किया गया। कांग्रेस ने पूरे देश में अपनी शाखाएं स्थापित कीं और भारतीयों को संगठित होने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही, कांग्रेस ने अपने वार्षिक अधिवेशनों के माध्यम से भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट किया और उन्हें अपने विचारों और मांगों को व्यक्त करने का मंच प्रदान किया।
(ii) राजनीतिक संगठन का विस्तार
कांग्रेस के माध्यम से भारत में राजनीतिक संगठन का विस्तार हुआ। कांग्रेस के मंच ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों, जातियों, और धर्मों को एकजुट किया और उन्हें अंग्रेजों के खिलाफ संगठित होने के लिए प्रेरित किया। कांग्रेस के माध्यम से भारतीय समाज में राजनीतिक चेतना का उदय हुआ और यह संगठन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया।
5. कांग्रेस के प्रारंभिक संघर्ष और चुनौतियां
कांग्रेस के प्रारंभिक वर्षों में संगठन को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। संगठन के भीतर विचारधाराओं का संघर्ष, अंग्रेजों की प्रतिक्रिया, और भारतीय समाज में विभाजन जैसी चुनौतियों ने कांग्रेस की गतिविधियों को प्रभावित किया।
(i) विचारधाराओं का संघर्ष
कांग्रेस के प्रारंभिक वर्षों में संगठन के भीतर विचारधाराओं का संघर्ष शुरू हो गया था। कांग्रेस के कुछ नेता उदारवादी थे, जो शांतिपूर्ण और संवैधानिक सुधारों की मांग कर रहे थे, जबकि अन्य नेता कट्टरपंथी थे, जो अंग्रेजों के खिलाफ सीधे संघर्ष की वकालत कर रहे थे। इस विचारधारा के संघर्ष ने कांग्रेस की नीतियों और गतिविधियों को प्रभावित किया और संगठन को दिशा देने में मुश्किलें खड़ी कीं।
(ii) अंग्रेजों की प्रतिक्रिया
कांग्रेस की गतिविधियों के प्रति ब्रिटिश सरकार की प्रतिक्रिया मिश्रित थी। कुछ समय तक ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस को नजरअंदाज किया, लेकिन जब कांग्रेस की गतिविधियां तेज होने लगीं और उसकी मांगें बढ़ने लगीं, तो अंग्रेजों ने इसे नियंत्रित करने का प्रयास किया। अंग्रेजों ने कांग्रेस की गतिविधियों को प्रतिबंधित करने और उसे विभाजित करने की कोशिश की, लेकिन संगठन ने अपनी गतिविधियों को जारी रखा।
निष्कर्ष
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। यह संगठन भारतीयों के लिए एक संगठित मंच बना, जहाँ उन्होंने अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए संघर्ष किया। कांग्रेस के माध्यम से भारतीय समाज में राजनीतिक जागरूकता का उदय हुआ और यह संगठन धीरे-धीरे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र बन गया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उदय केवल एक राजनीतिक संगठन की स्थापना नहीं थी, बल्कि यह भारतीय समाज के एकजुट संघर्ष की शुरुआत थी, जिसने अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
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