भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन में ए.ओ. ह्यूम की भूमिका
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का गठन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, और इसमें ए.ओ. ह्यूम की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। एक ब्रिटिश सिविल सेवक के रूप में ह्यूम ने भारतीयों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए एक मंच प्रदान करने में अहम भूमिका निभाई। यह ब्लॉग भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन में ए.ओ. ह्यूम की भूमिका का विश्लेषण करेगा और उनके योगदान को विस्तार से समझाएगा।
1. ए.ओ. ह्यूम का परिचय
एलन ऑक्टेवियन ह्यूम (A.O. Hume) का जन्म 6 जून 1829 को स्कॉटलैंड में हुआ था। वे ब्रिटिश सिविल सर्विस के एक अधिकारी थे और 1849 में भारत आए थे। भारत में अपनी सेवा के दौरान, ह्यूम ने भारतीय समाज के हालात को नजदीक से देखा और भारतीयों की समस्याओं और उनके प्रति ब्रिटिश सरकार के रवैये को समझा। उन्हें भारतीयों की दुर्दशा और असंतोष का गहरा एहसास हुआ, और यही वह बिंदु था जहाँ से ह्यूम के मन में भारतीयों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक संगठित मंच की स्थापना का विचार आया।
2. भारतीय समाज की स्थिति और ह्यूम की चिंताएँ
19वीं सदी के अंत तक, भारतीय समाज में ब्रिटिश शासन के खिलाफ असंतोष और विरोध की भावना तेजी से बढ़ रही थी। ब्रिटिश सरकार की विभाजनकारी नीतियाँ, आर्थिक शोषण, और भारतीयों के साथ भेदभाव ने जनमानस में गहरी नाराजगी पैदा कर दी थी। ह्यूम ने इस असंतोष को महसूस किया और समझा कि यदि भारतीयों को एक वैध मंच नहीं मिला, तो यह असंतोष हिंसक रूप धारण कर सकता है। उन्होंने इस संभावित खतरे को भांपते हुए भारतीयों के लिए एक राजनीतिक मंच की स्थापना की आवश्यकता महसूस की, जिससे उनके विचारों और मांगों को शांतिपूर्ण तरीके से व्यक्त किया जा सके।
3. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की पृष्ठभूमि
ह्यूम ने 1883 में भारतीय नेताओं को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना का प्रस्ताव रखा। इस पत्र में ह्यूम ने स्पष्ट किया कि ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीयों के असंतोष को संगठित और वैध रूप से व्यक्त करने की आवश्यकता है। ह्यूम का मानना था कि यदि भारतीयों को अपनी बात रखने के लिए एक मंच नहीं मिला, तो देश में विद्रोह और अशांति का माहौल पैदा हो सकता है। इस पत्र का प्रभाव यह हुआ कि भारतीय नेता ह्यूम के विचारों से सहमत हो गए और उन्होंने एक अखिल भारतीय संगठन की स्थापना के लिए सहमति दी।
4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुई। इस बैठक का आयोजन ह्यूम ने ही किया था, और इसमें कुल 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, बदरुद्दीन तैयबजी, केशव चंद्र सेन, और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे प्रमुख नेता शामिल थे। इस बैठक में कांग्रेस के मुख्य उद्देश्यों को तय किया गया, जिनमें भारतीयों के लिए राजनीतिक और नागरिक अधिकारों की मांग, प्रशासन में सुधार की मांग, और भारतीयों के हितों की रक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव बनाना शामिल था। ह्यूम को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) नियुक्त किया गया, और उन्होंने इस पद पर रहकर संगठन को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
5. ह्यूम की भूमिका और योगदान
ह्यूम ने कांग्रेस के शुरुआती वर्षों में संगठन को मजबूत बनाने और उसे एक सशक्त मंच के रूप में स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने भारतीय नेताओं के बीच संवाद और सहयोग को प्रोत्साहित किया और कांग्रेस के उद्देश्यों को स्पष्ट करने में मदद की।
(i) भारतीय नेताओं को एकजुट करना
ह्यूम ने भारतीय नेताओं को एक मंच पर लाने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उन्होंने हिंदू, मुस्लिम, पारसी, और अन्य समुदायों के नेताओं को एकजुट करने का प्रयास किया, जिससे कांग्रेस एक अखिल भारतीय संगठन बन सका। ह्यूम का उद्देश्य था कि भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों के नेता एक साथ आकर अपने विचारों और मांगों को पेश करें और ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक संगठित आवाज बनाएं।
(ii) कांग्रेस के लिए मार्गदर्शन प्रदान करना
कांग्रेस के शुरुआती वर्षों में ह्यूम ने संगठन के लिए मार्गदर्शन प्रदान किया। उन्होंने भारतीय नेताओं को ब्रिटिश शासन के साथ संवाद और सहयोग के माध्यम से सुधारों की मांग करने के लिए प्रोत्साहित किया। ह्यूम ने कांग्रेस के मंच से संवैधानिक सुधारों, भारतीयों के लिए प्रशासनिक सेवाओं में प्रतिनिधित्व, और ब्रिटिश सरकार से भारतीयों के अधिकारों की रक्षा की मांग की।
(iii) अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की खोज
ह्यूम ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने के प्रयास भी किए। उन्होंने ब्रिटिश संसद और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारतीयों की स्थिति और उनकी मांगों को उठाया। ह्यूम का मानना था कि भारतीयों के अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन महत्वपूर्ण है और इससे ब्रिटिश सरकार पर दबाव बढ़ेगा।
6. कांग्रेस में ह्यूम की विरासत
ह्यूम के योगदान से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख संगठन बन गया। हालांकि ह्यूम ब्रिटिश थे, लेकिन उन्होंने भारतीयों के अधिकारों के लिए जिस निष्ठा और समर्पण के साथ कार्य किया, वह अद्वितीय है। ह्यूम का संगठन में योगदान कांग्रेस की नींव को मजबूत करने और उसे एक सशक्त राजनीतिक संगठन बनाने में अहम था।
7. ह्यूम का अंतिम समय और कांग्रेस से अलगाव
ह्यूम ने 1892 में कांग्रेस के महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया और 1894 में इंग्लैंड लौट गए। हालांकि वे कांग्रेस से अलग हो गए, लेकिन उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने उनके प्रयासों से जो मजबूती पाई, वह आने वाले वर्षों में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आधार बनी।
निष्कर्ष
ए.ओ. ह्यूम का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गठन में योगदान ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण है। उन्होंने भारतीयों के लिए एक संगठित मंच प्रदान किया, जहाँ से उन्होंने अपने अधिकारों और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। ह्यूम का दृष्टिकोण और उनका समर्पण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में उनकी भूमिका केवल एक संगठन के गठन तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह भारतीय समाज के लिए एक नई दिशा और आशा का सूत्रपात भी थी। उनके योगदान ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक संगठित और सशक्त रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत को स्वतंत्रता की राह पर आगे बढ़ने में मदद मिली।
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