बुधवार, 9 अक्तूबर 2024

ताशी और नुंग्शी मलिक: माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली जुड़वां बहनें (First twin sisters to summit )


19 मई 2013 को भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा गया। इस दिन ताशी और नुंग्शी मलिक, उत्तराखंड की जुड़वां बहनें, माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाली पहली जुड़वां बहनें बनीं। उनका यह कारनामा न केवल एक व्यक्तिगत सफलता थी, बल्कि भारतीय महिलाओं के साहस और दृढ़ संकल्प का प्रतीक भी बना। ताशी और नुंग्शी ने अपने साहसिक कार्यों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण का संदेश दिया और यह साबित कर दिया कि महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं।

इस ब्लॉग में हम ताशी और नुंग्शी मलिक के जीवन, उनकी उपलब्धियों, और उनके माउंट एवरेस्ट अभियान के बारे में विस्तार से जानेंगे। साथ ही, उनके जीवन के संघर्षों और चुनौतियों के बारे में भी चर्चा करेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

ताशी और नुंग्शी मलिक का जन्म 21 जून 1991 को हरियाणा के सोनीपत जिले में हुआ था। उनके पिता कर्नल वीरेंद्र सिंह मलिक भारतीय सेना में अधिकारी थे, और उनकी माता अनु मलिक एक शिक्षिका थीं। ताशी और नुंग्शी का पालन-पोषण एक अनुशासित और प्रेरणादायक वातावरण में हुआ। बचपन से ही वे साहसिक खेलों की ओर आकर्षित थीं, और उनके पिता ने उन्हें हमेशा जीवन में बड़े सपने देखने और उन्हें पूरा करने की प्रेरणा दी।

अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, ताशी और नुंग्शी ने नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग (NIM), उत्तरकाशी से पर्वतारोहण का औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनकी पर्वतारोहण यात्रा यहीं से शुरू हुई, और वे जल्दी ही अपने साहसिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गईं।

माउंट एवरेस्ट चढ़ाई की प्रेरणा

ताशी और नुंग्शी मलिक के जीवन में पर्वतारोहण की प्रेरणा उनके पिता से मिली थी, जिन्होंने उन्हें हमेशा चुनौतियों का सामना करने और बड़े सपने देखने के लिए प्रेरित किया। उनकी माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने की योजना तब बनी जब उन्होंने पर्वतारोहण के प्रति अपनी गहरी रुचि और जुनून को पहचाना। माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊँची चोटी है, और इस पर चढ़ना किसी भी पर्वतारोही के लिए एक सपने की तरह होता है।

ताशी और नुंग्शी ने इस सपने को साकार करने के लिए कड़ी मेहनत की और अपने शारीरिक और मानसिक कौशल को विकसित किया। उन्होंने एवरेस्ट अभियान की तैयारी के लिए कई छोटे और मझोले पर्वतों की चढ़ाई की, जिससे उन्हें कठिन परिस्थितियों में खुद को साबित करने का मौका मिला।

माउंट एवरेस्ट अभियान

ताशी और नुंग्शी मलिक का माउंट एवरेस्ट अभियान अप्रैल 2013 में शुरू हुआ। इस अभियान के दौरान उन्हें कठिन मौसम, ऑक्सीजन की कमी, और कई शारीरिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई विश्व की सबसे कठिन चढ़ाइयों में से एक मानी जाती है, जहाँ हर कदम में मौत का खतरा होता है।

माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई 8,848 मीटर (29,029 फीट) है, और वहाँ ऑक्सीजन की कमी के कारण पर्वतारोहियों को अपनी शारीरिक क्षमता का पूरी तरह से इस्तेमाल करना पड़ता है। ताशी और नुंग्शी ने इन सभी चुनौतियों का साहस के साथ सामना किया और 19 मई 2013 को सफलतापूर्वक माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुँच गईं। यह दिन उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दिन था, क्योंकि वे इस अद्वितीय उपलब्धि को हासिल करने वाली पहली जुड़वां बहनें बनीं।

ताशी और नुंग्शी का संघर्ष

ताशी और नुंग्शी की यात्रा आसान नहीं थी। उन्हें समाज के पारंपरिक विचारों और मानसिकताओं का सामना करना पड़ा, जहाँ महिलाओं के लिए साहसिक खेलों को एक उपयुक्त क्षेत्र नहीं माना जाता था। इसके अलावा, पर्वतारोहण एक महंगा खेल है, और एवरेस्ट अभियान के लिए उन्हें वित्तीय कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ा। लेकिन उनके माता-पिता ने हमेशा उनका साथ दिया और उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रोत्साहित किया।

अपने साहस और संकल्प के बल पर ताशी और नुंग्शी ने न केवल एवरेस्ट की चढ़ाई की, बल्कि समाज के पारंपरिक विचारों को भी बदलने में सफलता पाई। उन्होंने यह साबित किया कि महिलाएँ किसी भी क्षेत्र में अपनी क्षमता का प्रदर्शन कर सकती हैं, अगर उन्हें सही मार्गदर्शन और समर्थन मिले।

एवरेस्ट के बाद की उपलब्धियाँ

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के बाद ताशी और नुंग्शी ने अपने साहसिक कार्यों को जारी रखा। वे केवल एवरेस्ट पर चढ़ाई करने तक ही सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने अन्य कई ऊँची चोटियों को भी फतह किया। उन्होंने "सेवन समिट्स" (दुनिया की सात सबसे ऊँची चोटियाँ) को फतह करने का लक्ष्य बनाया और इस लक्ष्य को भी सफलतापूर्वक पूरा किया।

ताशी और नुंग्शी ने 2014 में किलिमंजारो (अफ्रीका), माउंट एलब्रस (यूरोप), माउंट एकॉनकागुआ (दक्षिण अमेरिका), और माउंट विन्सन (अंटार्कटिका) की चोटियों पर सफलतापूर्वक चढ़ाई की। इसके साथ ही वे "एक्सप्लोरर्स ग्रैंड स्लैम" (सेवन समिट्स और उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव की यात्रा) को पूरा करने वाली दुनिया की पहली जुड़वां बहनें बन गईं।

महिला सशक्तिकरण का प्रतीक

ताशी और नुंग्शी मलिक की सफलता ने भारतीय महिलाओं के लिए एक नई प्रेरणा का स्रोत प्रदान किया है। उन्होंने न केवल पर्वतारोहण में सफलता प्राप्त की है, बल्कि महिला सशक्तिकरण का प्रतीक भी बनीं हैं। उन्होंने यह साबित किया है कि महिलाएँ किसी भी चुनौती को स्वीकार कर सकती हैं और उसे सफलतापूर्वक पूरा कर सकती हैं।

उनकी यात्रा ने कई युवा लड़कियों को साहसिक खेलों में हिस्सा लेने और अपने सपनों को साकार करने के लिए प्रेरित किया है। ताशी और नुंग्शी अपने अनुभवों को साझा करके नई पीढ़ी को प्रेरित करती हैं और उन्हें यह विश्वास दिलाती हैं कि कुछ भी असंभव नहीं है, अगर आप पूरी मेहनत और लगन के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं।

समाज सेवा और योगदान

ताशी और नुंग्शी मलिक ने पर्वतारोहण के अलावा समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने अपने अनुभवों को साझा कर युवाओं को साहसिक खेलों की ओर आकर्षित किया और उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत बनने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर "नुंग्शी ताशी फाउंडेशन" की स्थापना की, जिसका उद्देश्य साहसिक खेलों के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाना और युवा पीढ़ी को मानसिक एवं शारीरिक रूप से सशक्त बनाना है। उनके फाउंडेशन का मुख्य लक्ष्य है कि भारत में साहसिक खेलों के प्रति जागरूकता बढ़ाई जाए और युवाओं को इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया जाए।

पुरस्कार और सम्मान

ताशी और नुंग्शी मलिक की असाधारण उपलब्धियों के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 2016 में, उन्हें "नारी शक्ति पुरस्कार" से सम्मानित किया गया, जो भारत सरकार द्वारा दिया जाने वाला सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार है, जिसे महिलाओं को सशक्त बनाने और समाज में उनके योगदान के लिए दिया जाता है।

उनकी अद्वितीय सफलता ने उन्हें भारतीय पर्वतारोहियों के बीच एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है, और वे भारतीय महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनी हुई हैं। उनके साहस और संकल्प ने उन्हें एक ऐसी पहचान दिलाई है, जो उन्हें हमेशा प्रेरणास्रोत के रूप में प्रस्तुत करती है।

निष्कर्ष

ताशी और नुंग्शी मलिक की कहानी साहस, संकल्प, और सफलता की अद्वितीय मिसाल है। उन्होंने अपने जीवन के हर मोड़ पर चुनौतियों का सामना किया, लेकिन कभी हार नहीं मानी। माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के बाद उन्होंने यह साबित किया कि कोई भी चुनौती इतनी बड़ी नहीं होती, जिसे इच्छाशक्ति और मेहनत से पार न किया जा सके।

ताशी और नुंग्शी की जीवन यात्रा से हमें यह सीख मिलती है कि अगर हम अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं, तो हमें पूरी मेहनत और लगन के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। उनकी प्रेरक कहानी हमें यह बताती है कि कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं है, अगर हम उसमें पूरी तरह से विश्वास रखते हैं और उसे प्राप्त करने के लिए तैयार रहते हैं।

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