माउंट एवरेस्ट: संसार की सबसे ऊँची चोटी ( Mount Everest )

 माउंट एवरेस्ट: 

माउंट एवरेस्ट, जिसे नेपाली में सागरमाथा और तिब्बती में चोमोलुंगमा के नाम से जाना जाता है, विश्व की सबसे ऊँची पर्वत चोटी है। इसकी ऊँचाई 8,848 मीटर (29,029 फीट) है, और यह हिमालय पर्वतमाला का हिस्सा है। माउंट एवरेस्ट नेपाल और चीन की सीमा पर स्थित है और पर्वतारोहण के लिए यह विश्वभर में एक महत्वपूर्ण स्थल है। 

                                                     


माउंट एवरेस्ट का इतिहास

माउंट एवरेस्ट का नाम ब्रिटिश सर्वेयर जनरल सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने 19वीं सदी में भारत के सर्वेक्षण का नेतृत्व किया। 1856 में, सर्वेक्षणकर्ताओं ने एवरेस्ट की ऊँचाई की गणना की और इसे संसार की सबसे ऊँची चोटी घोषित किया। इससे पहले स्थानीय लोग इसे "सागरमाथा" (नेपाल) और "चोमोलुंगमा" (तिब्बत) के नाम से जानते थे, जिसका अर्थ है "पृथ्वी की माँ" या "पर्वतों की देवी।"

एवरेस्ट की चढ़ाई का इतिहास

माउंट एवरेस्ट पर पहली सफल चढ़ाई 29 मई 1953 को एडमंड हिलेरी और तेनजिंग नोर्गे शेरपा द्वारा की गई थी। इस अभियान ने मानवता के धैर्य और साहस का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया। इसके बाद से हजारों पर्वतारोही इस चुनौतीपूर्ण चोटी पर चढ़ाई कर चुके हैं, लेकिन इसकी कठिनाइयाँ आज भी वैसी ही हैं। यहाँ का मौसम, ऊँचाई और ऑक्सीजन की कमी पर्वतारोहियों के लिए बड़ी चुनौती पेश करती हैं।

एवरेस्ट की भौगोलिक स्थिति

माउंट एवरेस्ट हिमालय की महालंगुर श्रेणी में स्थित है। यह नेपाल के सोलुखुम्बु जिले और तिब्बत के शिगात्से क्षेत्र के बीच आता है। पर्वत की मुख्य चढ़ाई रूट नेपाल की दक्षिणी ढलान और तिब्बत की उत्तरी ढलान से होती है। दक्षिणी रूट नेपाल से सबसे लोकप्रिय और अपेक्षाकृत सुरक्षित माना जाता है।

चढ़ाई की चुनौतियाँ

माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई बेहद कठिन है और केवल शारीरिक ही नहीं बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत ताकत की आवश्यकता होती है। पर्वतारोहियों को ऊँचाई के कारण कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे कि ऑक्सीजन की कमी, ठंड, तेज़ हवाएँ और हिमस्खलन का ख़तरा। कई पर्वतारोही "डेथ जोन" (8,000 मीटर के ऊपर का क्षेत्र) में ऑक्सीजन सिलिंडर का सहारा लेते हैं क्योंकि वहाँ ऑक्सीजन का स्तर जीवन-रक्षक नहीं होता।

पर्यावरण और संरक्षण

माउंट एवरेस्ट की लोकप्रियता के कारण यहाँ का पर्यावरण बहुत प्रभावित हुआ है। पर्वतारोहियों द्वारा छोड़े गए कचरे, जैसे कि ऑक्सीजन सिलिंडर, टेंट, और प्लास्टिक, पर्वत के सौंदर्य और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाते हैं। हाल के वर्षों में, नेपाल सरकार और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने इस दिशा में सफाई अभियानों और नियमों को सख्ती से लागू करने का प्रयास किया है।

एवरेस्ट की आध्यात्मिक महत्ता

माउंट एवरेस्ट को स्थानीय लोग न केवल एक पर्वत मानते हैं, बल्कि इसे आध्यात्मिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण समझते हैं। तिब्बती संस्कृति में इसे "चोमोलुंगमा" कहा जाता है, जिसका अर्थ है "पृथ्वी की देवी।" यह पर्वत उनके लिए पवित्र है और इसकी चढ़ाई के लिए एक विशेष तैयारी और आदर की भावना रखनी पड़ती है। पर्वतारोहण करने से पहले स्थानीय लोग भगवान से आशीर्वाद लेने के लिए पूजा-पाठ करते हैं।

निष्कर्ष

माउंट एवरेस्ट केवल एक पर्वत नहीं, बल्कि यह साहस, धैर्य और अद्वितीय शारीरिक क्षमताओं का प्रतीक है। यह दुनिया भर के पर्वतारोहियों के लिए एक सपना है और इसकी चढ़ाई करना जीवन का सबसे बड़ा साहसिक कार्य माना जाता है। लेकिन एवरेस्ट की ओर कदम बढ़ाने से पहले हमें इसकी कठिनाइयों और चुनौतियों का पूरा ध्यान रखना चाहिए, ताकि हम इस पवित्र पर्वत की महत्ता और उसके पर्यावरण का सम्मान कर सकें।

माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई जितनी आकर्षक है, उतनी ही उसकी चढ़ाई कठिन और चुनौतीपूर्ण है, फिर भी यह पर्वतारोही की अदम्य इच्छाशक्ति और हौसले का सबसे बड़ा परीक्षण है।

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