20 मई 1965 – लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा: भारत के पहले एवरेस्ट विजेता ( Lieutenant Colonel Avtar Singh Cheema )


परिचय

20 मई 1965 भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में एक स्वर्णिम दिन के रूप में दर्ज है, जब लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाले पहले भारतीय बने। माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई दुनिया की सबसे कठिन और जोखिमभरी पर्वतारोहण यात्राओं में से एक मानी जाती है, और इस पर सफलता पाना साहस, धैर्य और अपार शारीरिक और मानसिक क्षमता की मांग करता है। लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा का यह साहसिक कार्य भारत के पर्वतारोहण इतिहास का मील का पत्थर साबित हुआ।

उनकी इस उपलब्धि ने भारत के युवा पर्वतारोहियों को प्रेरित किया और यह साबित किया कि भारतीय भी दुनिया की सबसे ऊँची चोटी को फतह कर सकते हैं। आइए, इस ब्लॉग में हम लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा के जीवन, उनकी माउंट एवरेस्ट की यात्रा और उनकी इस ऐतिहासिक उपलब्धि के महत्व पर गहराई से चर्चा करेंगे।                                  

प्रारंभिक जीवन और सेना में शामिल होना

लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा का जन्म 1933 में पंजाब के एक छोटे से गांव में हुआ था। उनका बचपन ग्रामीण परिवेश में बीता, जहाँ से उनके अंदर प्रकृति और पहाड़ों के प्रति गहरा लगाव विकसित हुआ। सेना में शामिल होने के बाद उन्होंने पर्वतारोहण में रुचि ली, और यह रुचि उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि का मार्ग प्रशस्त करेगी।

चीमा ने भारतीय सेना की ‘इंजीनियर्स’ शाखा में अपनी सेवाएँ दीं। सेना में शामिल होने के बाद उनका पर्वतारोहण के प्रति झुकाव और गहराता गया। उन्होंने भारतीय सेना की पर्वतारोहण इकाई के माध्यम से कई कठिन अभियानों में हिस्सा लिया और कठिन से कठिन पर्वतों को फतह किया। उनके दृढ़ संकल्प और अनुशासन ने उन्हें एक उत्कृष्ट पर्वतारोही बनाया।

भारतीय पर्वतारोहण और माउंट एवरेस्ट का आकर्षण

1960 के दशक में, भारतीय पर्वतारोहण समुदाय तेजी से विकसित हो रहा था। दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत, माउंट एवरेस्ट, को फतह करने का सपना हर पर्वतारोही की कल्पना में था। हालांकि, यह कार्य आसान नहीं था। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई, बर्फीले तूफान, ऑक्सीजन की कमी और खतरनाक ढलानों ने इसे दुनिया की सबसे कठिन पर्वत चढ़ाई बना दिया था। लेकिन भारतीय पर्वतारोहण संस्थान और भारतीय सेना के साहसी जवानों ने इसे संभव करने का सपना देखा।

1965 में, भारतीय पर्वतारोहण दल को माउंट एवरेस्ट को फतह करने का अवसर मिला। इस अभियान का नेतृत्व कैप्टन एमएस कोहली कर रहे थे, और दल में कुल 21 सदस्य थे, जिनमें से लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा सबसे प्रमुख पर्वतारोहियों में से एक थे। इस दल का उद्देश्य था माउंट एवरेस्ट की चोटी तक पहुँच कर भारत का राष्ट्रीय ध्वज फहराना और यह साबित करना कि भारतीय भी दुनिया के शीर्ष पर्वतारोहियों में स्थान रखते हैं।

एवरेस्ट की चुनौतीपूर्ण यात्रा

एवरेस्ट की चढ़ाई आसान नहीं थी। एवरेस्ट की कठिनाइयों में खतरनाक ग्लेशियर, बर्फीले तूफान, और पत्थरों के गिरने का जोखिम हमेशा रहता है। इसके अलावा, ऊँचाई बढ़ने के साथ ऑक्सीजन की कमी और बेहद ठंडा मौसम भी पर्वतारोहियों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

20 मई 1965 का दिन एक ऐतिहासिक दिन था जब लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा और उनके साथी नवांग गोम्बू शेरपा ने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा। यह एक बहुत ही कठिन यात्रा थी, जिसमें न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक क्षमता की भी परीक्षा होती है। इस ऐतिहासिक दिन पर, चीमा और गोम्बू शेरपा ने लगभग 29,000 फीट की ऊँचाई पर दुनिया की सबसे ऊँची चोटी को छुआ और भारत का तिरंगा फहराया।

भारतीय सेना और पर्वतारोहण संस्थान का योगदान

लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा की इस असाधारण उपलब्धि में भारतीय सेना और भारतीय पर्वतारोहण संस्थान (Indian Mountaineering Foundation) का महत्वपूर्ण योगदान रहा। सेना के अनुशासन, कड़ी ट्रेनिंग और शारीरिक दक्षता ने इस कठिन यात्रा को संभव बनाया। भारतीय पर्वतारोहण संस्थान ने पर्वतारोहियों को उत्कृष्ट प्रशिक्षण प्रदान किया, जिससे वे एवरेस्ट जैसे चुनौतीपूर्ण पर्वत को फतह करने के लिए तैयार हो सके। चीमा और उनकी टीम ने भारतीय पर्वतारोहण संस्थान के कई कठिन अभियानों में हिस्सा लिया था, जिन्होंने उन्हें एवरेस्ट अभियान के लिए तैयार किया।

माउंट एवरेस्ट की यात्रा की चुनौतियाँ

माउंट एवरेस्ट की यात्रा में कई अनपेक्षित चुनौतियाँ सामने आईं। 1965 के अभियान के दौरान चीमा और उनके दल ने अत्यधिक ठंड, बर्फीले तूफान, और ऑक्सीजन की कमी का सामना किया।

  • ऑक्सीजन की कमी: 8,000 मीटर से ऊपर का क्षेत्र जिसे "डेथ जोन" कहा जाता है, यहाँ ऑक्सीजन की अत्यधिक कमी होती है। पर्वतारोही इस ऊँचाई पर लंबे समय तक जीवित नहीं रह सकते। शिखर तक पहुँचने के लिए, पर्वतारोहियों को ऑक्सीजन सिलिंडर का उपयोग करना पड़ता है।

  • खतरनाक ढलान और ग्लेशियर: माउंट एवरेस्ट की ढलानों पर चढ़ना बेहद मुश्किल होता है। यहाँ ग्लेशियर, क्रेवास (बर्फ की दरारें), और हिमस्खलन जैसी खतरनाक परिस्थितियाँ होती हैं। कई बार, पर्वतारोहियों को इन खतरनाक क्षेत्रों से गुजरना पड़ता है, जो किसी भी समय जानलेवा साबित हो सकते हैं।

  • मौसम की अनिश्चितता: माउंट एवरेस्ट पर मौसम बहुत ही अस्थिर होता है। कभी-कभी अचानक बर्फीले तूफान आ जाते हैं, जो चढ़ाई को असंभव बना देते हैं। 1965 के अभियान के दौरान, चीमा और उनके दल को भी मौसम की अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ा, लेकिन उनकी तैयारियों ने उन्हें सफल बनाया।

लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा की प्रेरणा

लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा के इस साहसिक कारनामे के पीछे कई प्रेरणाएँ थीं। उनका दृढ़ संकल्प, अनुशासन, और अपने देश के प्रति समर्पण उन्हें एवरेस्ट की चोटी तक ले गया। भारतीय सेना में रहते हुए, उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया था और यह उनके चरित्र और साहस की एक गहरी परीक्षा थी। चीमा का दृढ़ संकल्प यह साबित करता है कि यदि किसी के पास सपने को साकार करने की प्रबल इच्छा हो, तो वह किसी भी चुनौती को पार कर सकता है। उनकी यह चढ़ाई सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह पूरे देश के लिए एक गर्व का क्षण था।

ऐतिहासिक महत्व और भारतीय पर्वतारोहण के लिए प्रेरणा

लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा की माउंट एवरेस्ट चढ़ाई ने न केवल भारतीय पर्वतारोहण के क्षेत्र में एक मील का पत्थर स्थापित किया, बल्कि इससे कई युवाओं को भी प्रेरणा मिली। उनकी इस उपलब्धि ने भारतीय पर्वतारोहण के मानकों को ऊँचा किया और दुनिया भर में यह संदेश दिया कि भारत भी एवरेस्ट जैसे चुनौतीपूर्ण अभियानों को सफलतापूर्वक अंजाम दे सकता है।

यह चढ़ाई उस समय भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण थी, जब देश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बनानी थी। चीमा की सफलता ने भारत को पर्वतारोहण की दुनिया में मानचित्र पर स्थान दिलाया और भारतीय पर्वतारोहण समुदाय के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना।

लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा के बाद के वर्ष

माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई के बाद, लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा को उनके अद्वितीय साहस और योगदान के लिए भारतीय सरकार द्वारा सम्मानित किया गया। उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से पद्म श्री और अर्जुन पुरस्कार से नवाजा गया। इसके अलावा, उन्हें सेना में भी उच्च पदों पर नियुक्त किया गया और भारतीय पर्वतारोहण संस्थान से जुड़कर युवा पर्वतारोहियों को प्रशिक्षित किया।

चीमा ने एवरेस्ट पर चढ़ाई के बाद भी कई अभियानों में हिस्सा लिया और अपना अनुभव युवा पर्वतारोहियों के साथ साझा किया। उनकी यह यात्रा सिर्फ एक व्यक्तिगत विजय नहीं थी, बल्कि यह भारत के पर्वतारोहण के भविष्य को आकार देने वाला एक महत्वपूर्ण अध्याय साबित हुआ।

निष्कर्ष

20 मई 1965 का दिन भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में हमेशा के लिए अमर रहेगा। लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा ने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़कर यह साबित कर दिया कि भारतीय पर्वतारोही भी किसी से कम नहीं हैं। उनका साहस, दृढ़ संकल्प और अनुशासन भारत के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है।

उनकी इस उपलब्धि ने न केवल भारतीय पर्वतारोहण को एक नई दिशा दी, बल्कि इसने विश्व स्तर पर भारत को सम्मान दिलाया। लेफ्टिनेंट कर्नल अवतार एस चीमा की यह कहानी हमें यह सिखाती है कि किसी भी लक्ष्य को हासिल करने के लिए साहस, धैर्य और आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है। आज भी, उनका नाम भारतीय पर्वतारोहण के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा हुआ है।

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